24-12-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

ईश्वरीय स्नेह का महत्व

दाता और विधाता बापदादा अपने स्नेही बच्चों प्रति बोले –

आज स्नेह के सागर अपने स्नेही चात्रक बच्चों से मिलने आये हैं। अनेक जन्मों से इस सच्चे अविनाशी ईश्वरीय स्नेह के प्यासे रहे। जन्म-जन्म की प्यासी चात्रक आत्माओं को अब सच्चा स्नेह, अविनाशी स्नेह अनुभव हो रहा है। भक्त आत्मा होने के कारण आप सभी बच्चे स्नेह के भिखारी बन गये। अब बाप भिखारी से स्नेह के सागर के वर्से के अधिकारी बना रहे हैं। अनुभव के आधार से सबकी दिल से अब यह आवाज़ स्वत: ही निकलता है कि ‘ईश्वरीय स्नेह हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।’ तो भिखारी से अधिकारी बन गये। विश्व में हर एक आत्मा को जीवन में आवश्यक चीज़ स्नेह ही है। जीवन में स्नेह नहीं तो जीवन नीरस अनुभव करते हैं। ‘स्नेह’ इतनी ऊँची वस्तु है जो आज के साधारण लोग स्नेह को ही भगवान मानते हैं। प्यार ही परमात्मा है वा परमात्मा ही प्यार है। तो स्नेह इतना ऊँचा है जितना भगवान को ऊँचा मानते हैं। इसलिए भगवान को स्नेह वा प्यार कहते हैं। यह क्यों कहा जाता, अनुभव नहीं है। फिर भी परमात्मा बाप जब इस सृष्टि पर आये हैं तो सभी बच्चों को प्रैक्टिकल जीवन में साकार स्वरूप से स्नेह दिया है, दे रहे हैं। तब अनुभव नहीं होते हुए भी यही समझते हैं कि स्नेह ही परमात्मा है। तो परमात्मा बाप की पहली देन ‘स्नेह’ है। स्नेह ने आप सबको ब्राह्मण जन्म दिया है। स्नेह की पालना ने आप सबको ईश्वरीय सेवा के योग्य बनाया है। स्नेह ने सहज योगी, कर्मयोगी, स्वत: योगी बनाया है। स्नेह ने हद के त्याग को भाग्य अनुभव कराया है। त्याग नहीं - भाग्य है। यह अनुभव सच्चे स्नेह ने कराया ना। इसी स्नेह के आधार पर किसी भी प्रकार के तूफान ईश्वरीय तोफा अनुभव करते। स्नेह के आधार पर मुश्किल को अति सहज अनुभव करते है। इसी ईश्वरीय स्नेह के अनेक सम्बन्धों में लगी हुई दिल को, अनेक टुकड़े हुई दिल को एक से जोड़ लिया है। अब एक दिल, एक दिलाराम है। दिल के टुकड़े नहीं हैं। स्नेह ने बाप समान बना दिया। स्नेह ने ही सदा साथ के अनुभव कारण सदा समर्थ बना दिया। स्नेह ने युग परिवर्तन कर लिया। कलियुगी से संगमयुगी बना दिया। स्नेह ने ही दुःख-दर्द की दुनिया से सुख के खुशी की दुनिया में परिवर्तन कर लिया। इतना महत्व है इस ‘ईश्वरीय स्नेह’ का। जो महत्व को जानते हैं वही महान बन जाते हैं। ऐसे महान बने हो ना! सभी से सहज पुरूषार्थ भी यही है। स्नेह में सदा समाये रहो। लवलीन आत्मा को कभी स्वप्न मात्र भी माया का प्रभाव नहीं पड़ सकता है। क्योंकि लवलीन अवस्था माया प्रूफ अवस्था है। तो स्नेह में रहना सहज है ना। स्नेह ने सभी को मधुबन निवासी बनाया है। स्नेह के कारण पहुँचे हो ना! बापदादा भी सभी बच्चों को यही वरदान देते - ‘सदा स्नेही भव।’ स्नेह ऐसा जादू है जिससे जो मांगेंगे वह प्राप्त कर सकेंगे। सच्चे स्नेह से, दिल के स्नेह से, स्वार्था स्नेह से नहीं। समय पर स्नेही बनने वाले नहीं। जब कोई आवश्यकता का समय आवे उस समय मीठा बाबा, प्यारा बाबा कहकर निभाने वाले नहीं। सदा ही इस स्नेह में समाये हुए हो। ऐसे के लिए बापदादा सदा छत्रछाया है। समय पर याद करने वाले वा मतलब से याद करने वाले, ऐसे को भी यथाशक्ति, यथा स्नेह रिटर्न में सहयोग मिलता है लेकिन यथा शक्ति। सम्पन्न सम्पूर्ण सफलता नहीं मिलती। तो सदा स्नेह द्वारा सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव करने के लिए सच्ची दिल के स्नेही बनो। समझा!

बापदादा सभी मधुबन घर का शृंगार बच्चों को विशेष स्नेह की बधाई दे रहे हैं। हर एक बच्चा बाप के घर का विशेष शृंगार है। इस मधुबन बेहद घर के बच्चे ही रौनक हैं। ऐसे अपने को समझते हो ना। दुनिया वाले क्रिसिमस मनाने के लिए कहाँ-कहाँ जाते हैं। और यह विशेष विदेशी वा भारत के बच्चे स्वीट होम में पहुँचे हैं। बड़ा दिन, बड़े ते बड़े बाप से बड़ी दिल से मनाने के लिए।

यह बड़ा दिन विशेष ‘बाप और दादा’ दोनों के यादगार निशानी का दिन है। एक दाता रूप से शिवबाबा की निशानी और बुढ़ा स्वरूप ब्रह्मा बाप की निशानी। कभी भी युवा रूप नहीं दिखायेंगे। क्रिसिमस फादर बूढ़ा ही दिखाते हैं। और दो रंग भी जरूर दिखायेंगे। सफेद और लाल। तो बाप और दादा दोनों की यह निशानी है। बापदादा छोटे बच्चों को जो उन्हों की इच्छा है - उससे भरपूर कर देता है। छोटे-छोटे बच्चे बड़े स्नेह से इस विशेष दिन पर अपनी दिल पसन्द चीज़ें क्रिसिमस फादर से माँगते हैं वा संकल्प रखते हैं। और निश्चय रखते हैं कि वह जरूर पूर्ण करेगा। तो यह यादगार भी आप बच्चों का है। चाहे पुराने शूद्र जीवन के कितने भी बुजुर्ग हो लेकिन ब्राह्मण जीवन में छोटे बच्चे ही हैं। तो सभी छोटे बच्चे जो भी श्रेष्ठ कामना करते वह पूर्ण होती हैं ना। इसलिए यह याद निशानी लास्ट धर्म वालों में भी चली आ रही है। आप सभी को इस संगमयुग के बड़े दिन की बहुत-बहुत सौगातें बापदादा द्वारा मिल गई हैं ना। विशेष यह बड़ा दिन सौगातों का दिन है। तो बापदादा सबसे बड़ी सौगात - स्वराज्य और स्वर्ग का राज्य देता है। जिसमें अप्राप्त कोई वस्तु रह नहीं जाती। सर्व प्राप्ति स्वरूप बन जाते हो। तो बड़ा दिन मनाने वाले बड़ी दिल वाले हैं। विश्व को देने वाले तो बड़ी दिल वाले हुए ना। तो सभी को संगमयुगी बड़े दिन की बड़ी दिल से बड़े ते बड़े बापदादा बधाई दे रहे हैं। वो लोग 12 बजे के बाद मनायेंगे, आप सबसे नम्बर आगे हो ना। तो पहले आप मना रहे हो। पीछे दुनिया वाले मनायेंगे। विशेष रूप में डबल विदेशी आज बहुत उमंग उत्साह से याद सौगात बाप प्रति स्थूल सूक्ष्म रूप में दे रहे हैं। बापदादा भी सभी डबल विदेशी बच्चों को स्नेह के सौगात की रिटर्न में पद्मगुणा, सदा स्नेही साथी रहेंगे, सदा स्नेह के सागर में समाये हुए लवलीन स्थिति का अनुभव करेंगे, ऐसे वरदान भरी याद और अमर प्यार की रिटर्न में सौगात दे रहे हैं। सदा गाते और खुशी में नाचते रहेंगे। सदा मुख मीठा रहेगा। ऐसे ही स्नेही भारत के बच्चों को भी विशेष सहज योगी, स्वत: योगी के वरदान की यादप्यार दे रहे हैं।

सभी बच्चों को दाता और विधाता बापदादा अविनाशी स्नेह सम्पन्न सदा समर्थ स्वरूप से सहज अनुभव करने की यादप्यार दे रहे हैं सभी को यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

1. सदा अपने को इस पुरानी दुनिया की आकर्षण से न्यारे और बाप के प्यारे, ऐसे अनुभव करते हो? जितना न्यारे होंगे उतना स्वत: ही प्यारे होंगे। न्यारे नहीं तो प्यारे नहीं। तो न्यारे हैं और प्यारे हैं या कहाँ न कहाँ लगाव है? जब किसी से लगाव नहीं तो बुद्धि एक बाप तरफ स्वत: जायेगी। दूसरी जगह जा नहीं सकती। सहज और निरंतर योगी की स्थिति अनुभव होगी। अभी नहीं सहजयोगी बनेंगे तो कब बनेंगे? इतनी सहज प्राप्ति है, सतयुग में भी अभी की प्राप्ति का फल है। तो अभी सहजयोगी और सदा के राज्य भाग्य के अधिकारी सहजयोगी बच्चे सदा बाप के समान समीप हैं। तो अपने को बाप के समीप साथ रहने वाले अनुभव करते हो? जो साथ हैं उनको सहारा सदा है। साथ नहीं रहते तो सहारा भी नहीं मिलता। जब बाप का सहारा मिल गया तो कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। जहाँ सर्व शक्तिवान बाप का सहारा है तो माया स्वयं ही किनारा कर लेती है। ताकत वाले के आगे निर्बल क्या करेगा? किनारा करेगा ना। ऐसे माया भी किनारा कर लेगी, सामना नहीं करेगी। तो सभी मायाजीत हो? भिन्नभिन्न प्रकार से, नये-नये रूप से माया आती है लेकिन नॉलेजफुल आत्मायें माया से घबराती नहीं। वह माया के सभी रूप को जान लेती हैं। और जानने के बाद किनारा कर लेती। जब मायाजीत बन गये तो कभी कोई हिला नहीं सकता। कितनी भी कोई कोशिश करे लेकिन आप न हिलो।

अमृतवेले से रात तक बस बाप और सेवा इसके सिवाए और कोई लगन न रहे। बाप मिला और सेवाधारी बने। क्योंकि जो मिला है उसको जितना बाँटेंगे उतना बढ़ेगा। एक दो और पद्म पाओ। यही याद रखो - कि हम सर्व भण्डारों के मालिक हैं, भरपूर भण्डारे हैं। जिसको दुनिया ढूँढ रही है उसके बच्चे बने हैं। दुःख की दुनिया से किनारा कर लिया। सुख के संसार में पहुँच गये। तो सदा सुख के सागर में लहराते, सबको सुख के खज़ाने से भरपूर करो। अच्छा –